सात ठाकुर जो वृंदावन मे प्रकट हुए है
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1. गोविंददेव जी , जयपुर
कंहा से मिली :वृंदावन के गौमा टीला से
यहा है स्थापित :जयपुर के राजकीय महल मे
रूप गोस्वामी को श्री कृष्ण की यह मुर्ति वृंदावन के गौमा टीला नामक स्थान से वि.सं. 1535 मे मिली थी ।उन्होंने उसी स्थान पर छोटी सी कुटिया मे इस मूर्ति को स्थापित किया ।इसके बाद रघुनाथ भट्ट गोस्वामी ने गोविंददेव जी की सेवा पूजा संभाली उन्ही के समय मे आमेर नरेश मानसिंह ने गोविंददेव जी का भव्य मंदिर बनवाया इस मंदिर मे गोविंददेव जी 80 साल विराजे, औरंगजेब के शासन काल मे बृज पर हुए हमले के समय गोविंद जी को उनके भक्त जयपुर ले गए, तबसे गोविंदजी जयपुर के राजकीय महल मंदिर मे विराजमान है
2. मदन मोहन जी, करौली
कहा से मिली :वृंदावन के कालीदह के पास द्वादशादित्य टीले से
यहा है स्थापित : करौली (राजस्थान )मे
यह मूर्ति अद्वैत प्रभु को वृंदावन के द्वादशादित्य टीले से प्राप्त हुई थी उन्होंने सेवा पूजा के लिए यह मूर्ति मथुरा के एक चतुर्वेदी परिवार को सौंप दी और चतुर्वेदी परिवार से मांग कर सनातन गोस्वामी ने वि.सं 1590 (सन् 1533)मे फिर से वृंदावन के उसी टीले पर स्थापित किया। बाद मे क्रमश: मुलतान के नामी व्यापारी रामदास कपूर और उड़ीसा के राजा ने यहा मदन मोहन जी का विशाल मंदिर बनवाया। मुगलिया आक्रमण के समय भक्त इन्हे जयपुर ले गए पर कालांतर मे करौली के राजा गोपाल सिंह ने अपने राजमहल के पास बड़ा सा मंदिर बनवाकर मदनमोहन जी की मूर्ति को स्थापित किया,तबसे मदनमोहन जी करौली मे दर्शन दे रहे है ।
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3. गोपीनाथ जी, जयपुर
कंहा से मिली : यमुना किनारे वंशीवट से
यहा है स्थापित : पुरानी बस्ती जयपुर
श्री कृष्ण की यह मुर्ति संत परमानंद भट्ट को यमुना किनारे वंशीवट पर मिली और उन्होंने इस प्रतिमा को निधिवन के पास स्थापित कर मधु गोस्वामी को इनकी सेवा पूजा सौंपी। बाद मे रायसल राजपूतो ने यहा मंदिर बनवाया पर औरंगजेब के आक्रमण के दौरान इस प्रतिमा को भी जयपुर ले जाया गया, तबसे गोपीनाथ जी वहा पुरानी बस्ती स्थित गोपीनाथ मंदिर मे विराजमान है।
4. जुगलकिशोर जी, पन्ना (म.प्र)
कहा से मिली : वृंदावन के किशोरवन से
यहा है स्थापित : पुराना जुगलकिशोर मंदिर पन्ना (म .प्र)
भगवान जुगलकिशोर की यह मुर्ति हरिराम व्यास को वि. सं 1620 की माघ शुक्ल एकादशी को वृंदावन के किशोरवन नामक स्थान पर मिली। व्यास जी ने उस प्रतिमा को वही प्रतिष्ठित किया।बाद मे ओरछा के राजा मधुकर शाह ने किशोरवन के पास मंदिर बनवाया।यहा भगवान जुगलकिशोर अनेक वर्षो तक विराजे पर मुगलिया हमले के समय उनके भक्त उन्हे ओरछा के पास पन्ना ले गए।ठाकुर आज भी पन्ना के पुराने जुगलकिशोर मंदिर मे दर्शन दे रहे है।
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5. राधारमण जी, वृंदावन
कहा से मिली : नेपाल की गंडकी नदी से
यहा है स्थापित : वृंदावन
गोपाल भट्ट गोस्वामी को नेपाल की गंडक नदी मे एक शालिग्राम मिला।वे उसे वृंदावन ले आए और केसीघाट के पास मंदिर मे प्रतिष्ठित कर दिया।एक दिन किसी दर्शनार्थी ने कटाक्ष कर दिया कि चंदन लगाए शालिग्राम जी तो एसे लगते है मानो कढी मे बैंगन पडे हो।यह सुनकर गोस्वामी जी बहुत दुखी हुए पर सुबह होते ही शालिग्राम से राधारमण की दिव्य प्रतिमा प्रकट हो गई। यह दिन वि. सं 1599 (सन् 1542)कि वैशाख पूर्णिमा का था।वर्तमान मंदिर मे इनकी प्रतिष्ठापना सन् 1884 मे कि गई।
उल्लेखनीय है कि मुगलिया हमले के बावजूद यही एक मात्र एसी प्रतिमा है जो वृंदावन से कही बहर नही गई।इसे भक्तो ने वृंदावन मे ही छुपाकर रखा।इसकी सबसे विषेश बात यह है कि जन्माष्टमी जहा दुनिया के सभी कृष्ण मंदिरो मे रात्रि बारह बजे उत्सव होता है , वही राधारमण जी कि जन्म अभिषेक दोपहर बारह बजे होता है, मान्यता है ठाकुर जी सुकोमल होते है उन्हे रात्रि मे जागना ठीक नही।
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6. राधावल्लभ जी , वृंदावन
कहा से मिली : यह प्रतिमा हित हरिवंश जी को दहेज मे मिली थी
यहा है स्थापित : वृंदावन
भगवान श्रीकृष्ण की यह सुदंर प्रतिशत प्रतिमा हित हरिवंश जी को दहेज मे मिली थी।उनका विवाह देवबंद से वृंदावन आते समय चटथावल गाव मे आत्मदेव ब्राह्मण की बेटी से हुआ था।पहले वृंदावन के सेवाकुंज मे (वि. सं 1591)और बाद मे सुंदरलाल भटनागर द्वारा बनवाया गया (कुछ लोग इसका श्रेय रहीम को देते है )लाल पत्थर वाले पुराने मंदिर मे प्रतिष्ठित हुए।
मुगलिया हमले के समय भक्त इन्हे कामा (राजस्थान ) ले गए थे।वि. सं 1842 मे एक बार फिर भक्त इस प्रतिमा को वृंदावन ले आये और यहा नवनिर्मित मंदिर मे प्रतिष्ठित किया, तबसे राधावल्लभ जी की प्रतिमा यही विराजमान है।
7. बाकेबिहारी जी, वृंदावन
कहा से मिली : वृंदावन के निधिवन से
यहा है स्थापित : वृंदावन
मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को स्वामी हरिदासजी की आराधना को साकार रूप देने के लिए बाकेबिहारी जी की प्रतिमा निधिवन मे प्रकट हुई। स्वामी जी ने उस प्रतिमा को वही प्रतिष्ठित कर दिया। मुगलिया आक्रमण के समय भक्त इन्हे भरतपुर (राजस्थान ) ले गए। वृंदावन मे भरतपुर वाला बगीचा नाम के स्थान पर वि. सं 1921 मे मंदिर निर्माण होने पर बाकेबिहारी जी एक बार फिर वृंदावन मे प्रतिष्ठित हुए, तब से बिहारीजी यही दर्शन दे रहे है।
बिहारी जी की प्रमुख विषेश बात यह है कि यह साल मे केवल एक दिन (जन्माष्टमी के बाद भोर मे)मंगला आरती होती है, जबकि अन्य वैष्णव मंदिरो मे नित्य सुबह मंगला आरती होने की परंपरा है
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