श्री विष्णुसहस्त्रनाम महिमा | विष्णुसहस्त्रपाठ की विधि | ShriVishnusahsranaam Mahima |Vishnusahasra path vidhi |
श्री विष्णुसहस्त्रनाम महिमा | विष्णुसहस्त्र
पाठ की विधि | Shri
Vishnusahsranaam Mahima |
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श्री विष्णुसहस्त्रनाम महिमा
जब भी सहस्त्र नाम शब्द की बात होती है सर्वप्रथम सबके मन में श्री
विष्णुसहस्त्रनाम मुख पर सर्व प्रथम आता है। हालांकि सभी देवी
देवताओ का नाम हमारे शास्त्रों में बताया हुआ है। लेकिन
विष्णुसहस्त्रनाम कलियुग में औषधि के रूप में काम कर रहा है| ये
दुनिया में कई लोगो ने अनुभव में पाया है।
विष्णु के इन एक हजार नामों में मानव धर्म के बारे में बताया गया है. मनुष्य द्वारा मानसिक और शारीरिक रूप से होने वाले सभी काम और उनके फलों का वर्णन है. जैसे सहस्रनाम में 135वां नाम ‘धर्माध्यक्ष’ है. इसका मतलब है कि कर्म के अनुसार इंसान को पुरस्कार या दंड देने वाले देव...G/F/in/t @ Dwarkadhish Pandaji
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विष्णुसहस्त्रनाम क्या है ?
विष्णुसहस्त्रनाम गरुड़पुराण,पद्मपुराण,मत्स्यपुराण में भी
उल्लेखित किया हुआ है। किन्तु सबसे प्रसीद्ध जो विष्णुसहस्त्र
है वो है महाभारत के अनुशासनपर्व के 149 प्रकरण में इसका
उल्लेख है जब भीष्मपितामह मृत्युशैया पर है तब उन्होंने यह
नाम युधिष्ठिर को बताये थे।
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विष्णुसहस्त्रनाम की उत्पत्ति कैसे हुई थी?
युधिष्ठिर धर्मराज थे, सत्यवान थे, महाभारत का युद्ध समाप्त होने के
बाद युधिष्ठिर दुखित होने लगे वो अपने आपको अकेला
महसूस करने लगे | उनके जीवन का अब कोई लक्ष्य नहीं रहा | तब
में जीके क्या करूगा ऐसा उन्होंने मन में विचार किया तब भगवान्
श्रीकृष्ण ने उन्हें मन और हृदय की शांति के लिए भीष्मपितामह के
पास जाने को सलाह दी | पश्चात् युधिष्ठिर ने भीष्मपितामह के पास
जाकर प्रश्न पूछा की मेरे मन में, ह्रदय में, शांति का अनुभव नहीं हो
रहा कृपया आप मुझे बताये उत्तम धर्म कौन सा है ? किस मंत्र या
स्तोत्र का उच्चारण करने से शांति प्राप्ति होती है ? और जन्म मरण
के फेरो से छुट जाए | तब अंतिम समय में भीष्मपितामह ने
युधिष्ठिर से कहा मनुष्य मन तथा हृदय से भक्ति श्रद्धा सहित
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भगवान् विष्णु की स्तुति करे वही उत्तम धर्म है । पश्चात
भीष्मपितामह ने विष्णुसहस्त्र का उपदेश युधिष्ठिर को सुनाया|
कहते हैं कि विष्णु सहस्रनाम के जाप में बहुत सारे चमत्कार समाएं हैं। इस मंत्र को सुनने मात्र से सात जन्म संवर जाते हैं, सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं और हर दुख का अंत होता है। इस स्तोत्र के तीन प्रमुख भाग माने गये हैं, जिसमें से प्रथम है
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पूर्व पीठिका
इसमे सर्वप्रथम गणेश, विष्वक्सेन, वेदव्यास तथा विष्णु का नमन किया जाता है। इसके बाद युधिष्ठिर के प्रश्न दिए गए हैं,
किमेकं दैवतं लोके किं वाप्येकं परायणम्। स्तुवन्तः कं कमर्चन्तः प्राप्नुयुर्मानवाः शुभम्॥
जिसका अर्थ है, सभी लोकों में सर्वोत्तम देवता कौन है?संसारी जीवन का लक्ष्य क्या है?किसकी स्तुति व अर्चन से मानव का कल्याण होता है?सबसे उत्तम धर्म कौनसा है?किसके नाम जपने से जीव को संसार के बंधन से मुक्ति मिलती है?इसके उत्तर में भीष्म ने कहा,"जगत के प्रभु, देवों के देव, अनंत व पुरूषोत्तम विष्णु के सहस्रनाम के जपने से, अचल भक्ति से, स्तुति से, आराधना से, ध्यान से, नमन से मनुष्य को संसार के बंधन से मुक्ति मिलती है। यही सर्वोत्तम धर्म है।"
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द्वितीय भाग
इसके बाद ऋषि, देवादि संकल्प तथा परमात्मा का ध्यान किया जाता है। इस भाग मे विश्वं से आरंभ सर्वप्रहरणायुध तक सभी सहस्र यानि 1000 नामों को 107 श्लोकों मे सम्मिलित किया गया है। परमात्मा के आनंत रूप, स्वभाव, गुण व नामों में से सहस्र नामों को इसमें लिया गया है।
उत्तर पीठिका
ये तीसरा भाग है जिसे फलश्रुति भी कहते हैं। इस भाग मे सहस्रनाम के सुनने अथवा पठन से प्राप्त होने के लाभ का विवरण दिया गया है। इसी भाग में विष्णु के सहस्र अर्थात एक हजार नामों की सूची है।
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विष्णुसहस्त्रनाम का महत्व
शंकराचार्य ने भी इस में भास्य लिखा हुआ है।
रामानुचार्य ने भी 12 वी सदी में इन नमो का विस्तृति कारन
किया हुआ है । माधवाचार्य ने भी विस्तार से इस पर संशोधन
कर अनुभव किया था | ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी इसकी विस्तार
से बताया हुआ है।
विष्णुसहस्त्रनाम के लाभ
य इदं शुणुयान्नित्यं यश्चापि पतिकीर्तयेत |
नाशुभं प्राप्नुयात किंचित सोमुत्रेह च मानवः ॥
जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करता है या सुनता है या इसका गान
करता है। उस मनुष्य का इस लोक में कुछ भी शुभ नहीं होता |
वेदांतगो ब्राह्मणःस्यात्त क्षत्रियो विजयी भवेत् ।
वैश्यों धनसमृद्धः स्याच्छूद्रः सुखमवाप्नुयात ||
ब्राह्मण इसका पाठ करेने से वेदज्ञ बनता है, क्षत्रिय विजय प्राप्त
करता है, वैश्य धन को प्राप्त करता है,शूद्र सुखी बनता है।
स्तोत्र के हैं तीन प्रमुख भाग
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इस स्तोत्र का निरंतर पाठ करने से मनुष्य समग्र संसार के बंधनो से
मुक्त हो जाता है| और मन-हृदय में स्थायी रूप से शांति की प्राप्ति
होती है| मन प्रसन्न रहता है। शोक दूर हो जाता है। विष्णुसहस्त्रनाम
तत्वों से भरा हुआ है| कलियुग का औषध है । पारसमणि है । इसक
माध्यम स्वर से शुद्ध उच्चारण करने से योग भी हो जाता है।
विष्णुसहस्त्र महाभारत के पंचरत्नों में से एक है। सिर्फ इतना
ही नहीं आयुर्वेद के महान ग्रन्थ चरकसंहिता में भी चरक मुनि
ने कहा "विष्णुसहस्त्रनाम का निरंतर पाठ करने से सभी रोगो
का नाश हो जाता है जैसे एक लकड़ी को अग्निमे रखते ही
भस्मीभूत हो जाती है वैसे ही सभी पाप और रोग का विनाश
हो जाता है|
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विष्णुसहस्त्रपाठ करने की विधि
इसका पाठ विधिवत करने से घर का वास्तुदोष समाप्त हो जाता है।
नित्य तीन पाठ करने से नवग्रहों का कोई भी दोष हो शांत हो जाता है
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किसी भी बच्चे का जन्म मूल नक्षत्र या आश्लेषा नक्षत्र में हुआ है तो
सविधि 120 पाठ करने से वो दोष समाप्त हो जाता है।
धन और स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए नित्य 1 पाठ करना
चाहिए।
नित्य बारह पाठ करने से शत्रुपीड़ा शांत हो जाती है।
गर्भवती महिला अगर यह पाठ स्वयं करती है या इसका श्रवण करती
है तो श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है।
धर्म की कामना वाला मनुष्य धर्म को प्राप्त करता है।
धन की इच्छा रखने वाला दहूम को प्राप्त करता है।
संतान की कामना वाला संतान को प्राप्त करता है।
यह पाठ करने से शत्रु भस्मित हो जाता है।
इस स्तोत्र के पाठ से सर्व दानो का फल मिलता है।|
सभी देवताओ के पूजन का फल प्राप्त होता है|
इस पाठ की विधि कुछ इस प्रकार है
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भक्तिमान्यः सदोत्थाय शुचिस्तद्गतमानसः ।|
सहस्त्रं वासुदेवस्य नाम्नामेतत प्रकीर्तयेत ||
जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर नित्य प्रभात काल में स्नानादि कर
भगवान् विष्णुका ध्यान कर इस वासुदेव के सहस्त्र नामो का
पाठ करता है वो मनुष्य सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करता है ।
अचल संपत्ति का मालिक बनता है। उत्तम सुखो को प्राप्त
करता है। रोग-शोक से मुक्त हो जाता है। दुःख और
महाआपत्तिओ से मुक्त हो जाता है।
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"जन्ममृत्यु जराव्याधि भयं नैवोपजायते"
जन्म-मृत्यु, आधी-व्याधि और भय से मुक्त हो जाता है।
जिस मनुष्य को क्रोध बहुत आता है वो इसका पाठ करता है तो क्रोध
शांत हो जाता है।
विष्णुसहस्त्र में तो यहाँ तक कहा है
सर्व वेदेषु यत्पुण्यं सर्वतीर्थेषु यत्फलं ।
तत्फलं समवाप्नोति स्तुत्वा देवं जनार्दनं ||
चार वेदो को पढ़ने से जो फल प्राप्त होता है।
सर्व तीर्थों में स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है
वो फल भगवान् के इस पाठ को करने से प्राप्त होता है।
विष्णुसहस्त्र पाठ कहा करना चाहिए ?
यो नरः पठते नित्यं त्रिकालं केशवालये |
द्विकालं एक कालं वा क्रूरं सर्वं व्यपोहति ||
जो मनुष्य प्रतिदिन केशव के मंदिर में या मूर्ति के सामने तीनो कालो
में यह पाठ करता है।
या दो काल पाठ करता है वो मनुष्य अपने सभी पापो का विनाश कर
देता है।
भगवान् ने स्वयं कहा " नाम्नां सहस्त्रं योधीते द्वादश्यां मम
सन्निधौ"
जो मनुष्य द्वादशी के दिन मेरी मूर्ति के सामने यह पाठ करता है उसे
इस लोक में कोई भय नहीं होता
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शनैर्दहति पापानि कल्पकोटिशतानी च ।|
अश्वत्थ सन्निधौ पार्थः तुलसीसन्निधौ तथा ||
हे अर्जुन | मनुष्य के करोडो जन्मो के पापोंका विंश हो जाएगा अगर
वो पीपल के पेड़ के आगे या तुलसी के आगे यह पाठ का गान करेगा
| इतना महान यह विष्णुसहस्त्र पाठ है और उनकी महिमा है।
॥ श्री विष्णुसहस्त्र नाम महिमा समाप्तः||
द्वारका धाम आपके जन्मदिन ओर प्रासंगिक दिनों ओर शुभअवसर पर
द्वारका धाम में अधिकमास (मलमास) के उपलक्ष में विष्णुसहस्त्रनाम के पाठ ओर अन्य पाठ करने हेतु हमारा सम्पर्क करें।
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Narayan Narayan om
ReplyDeleteWow!! Great post. Thanks for sharing this post here with us.
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Ram Ram panditji.
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