हाथी की कमाई
कोई हाथी मरकर यमपुरी पहुँचा। यमराज ने हाथी से पूछाः "इतना मोटा बढ़िया हाथी और मनुष्य लोक में पैदा होने के बाद भी ऐसे कंगले का कंगला आ गया ?
कुछ कमाई नहीं की तूने ?"
F/g+/t @ Dwarkadhish pandaji
हाथी बोलाः "मैं क्या कमाई करता ?
मनुष्य तो मुझसे भी बड़ा है फिर भी वह कंगला का कंगला आ जाता है।"
यमराजः "मनुष्य बड़ा कैसे है ? वह तो तेरे एक पैर के आगे भी छोटा सा दिखाई पड़ता है। तू अगर अपनी पूँछ का एक झटका मारे तो मनुष्य चार गुलाट खा जाए। तेरी सूंड दस-दस मनुष्यों को घुमा कर गिरा सकती है।
मनुष्य से बड़ा और मजबूत तो घोड़ा होता है, ऊँट होता है और उन सबसे बड़ा तू है।"
क्या खाक है मनुष्य बड़ा ! वह तो छोटा नाटा और दुबला पतला होता है। इधर तो कई मनुष्य आते हैं। मनुष्य बड़ा नहीं होता।"
F/g+/t @ Dwarkadhish pandaji
हाथीः "महाराज ! आपके पास तो मुर्दे मनुष्य आते हैं। किसी जिन्दे मनुष्य से पाला पड़े तो पता चले कि मनुष्य कैसा होता है।"
यमराज ने कहाः "ठीक है। मैं अभी जिन्दा मनुष्य बुलवाकर देख लूँगा।"
यमराज ने यमदूतों को आदेश दिया कि अवैधानिक तरीके से किसी को उठाकर ले आना।
यमदूत चले खोज में मनुष्यलोक पर। उन्होंने देखा कि एक किसान युवक रात्रि के समय अपने खलिहान में खटिया बिछाकर सोया था। यमदूतों ने खटिया को अपने संकल्प से लिफ्ट की भाँति ऊपर उठा लिया और बिना प्राण निकाले उस युवक को सशरीर ही यमपुरी की ओर ले चले।
ऊपर की ठंडी हवाओं से उस किसान की नींद खुल गई। सन्नाटा था। चित्त एकाग्र था। उसे यमदूत दिखे। उसने कथा में सुना था कि यमदूत इस प्रकार के होते हैं।
खटिया के साथ मुझे ले जा रहे हैं। अगर इनके आगे कुछ भी कहा और 'तू-तू..... मैं-मैं' हो गई और कहीं थोड़ी-सी खटिया टेढ़ी कर दी तो ऐसा गिरूँगा कि हड्डी पसली का पता भी नहीं चलेगा।
F/g+/t @ Dwarkadhish pandaji
उस युवक ने धीरे से अपनी जेब में हाथ डाला और कागज पर कुछ लिखकर वह चुपके से फिर लेट गया। खटिया यमपुरी में पहुँची।
खटिया लेकर आये यमदूतों को तत्काल अन्यत्र कहीं दूसरे काम पर भेज दिया गया। उस युवक ने किसी दूसरे यमदूत को यमराज के नाम लिखी वह चिट्ठी देकर यमराज के पास भिजवाया।
चिट्ठी में लिखा थाः "पत्रवाहक मनुष्य को मैं यमपुरी का सर्वेसर्वा बनाता हूँ।" नीचे आदि नारायण भगवान विष्णु का नाम लिखा था।
यमराज चिट्ठी पढ़कर सकते में आ गये लेकिन भगवान नारायण का आदेश था इसलिए उसके परिपालन में युवक को सर्वेसर्वा के पद पर तिलक कर दिया गया।
अब जो भी निर्णय हो वे सब इस सर्वेसर्वा की आज्ञा से ही हो सकते हैं।
F/g+/t @ Dwarkadhish pandaji
अब कोई पापी आता तो यमदूत पूछतेः "महाराज ! इसे किस नरक में भेजें ?"
वह कहता ; "वैकुण्ठ भेज दो।" और वह वैकुण्ठ भेज दिया जाता।
किसी भी प्रकार का पापी आता तो वह सर्वेसर्वा उसे न अस्सी नर्क में भेजता न रौरव नर्क में भेजता न कुंभीपाक नर्क में, वरन् सबको वैकुण्ठ में भेज देता था। थोड़े ही दिनों में वैकुण्ठ भर गया।
उधर भगवान नारायण सोचने लगेः "क्या पृथ्वी पर कोई ऐसे पहुँचे हुए आत्म साक्षात्कारी महापुरूष पहुँच गये हैं कि जिनका सत्संग सुनकर, दर्शन करके आदमी निष्पाप हो गये और सब के सब वैकुण्ठ चले आ रहे हैं। अगर कोई ब्रह्मज्ञानी वहाँ हो तो मेरा और उसका तो सीधा संबंध होता है।"
वह परमात्मा साधु की जिह्वा पर निवास करता है। विष्णु जी सोचते हैं- "ऐसा कोई साधु मैंने नहीं भेजा फिर ये सबके सब लोग वैकुण्ठ में कैसे आ गये ? क्या बात है ?"
भगवान ने यमपुरी में पुछवाया।
यमराज ने अहवाल भेजा किः "भगवन् ! वैकुण्ठ किसी ब्रह्मज्ञानी संत की कृपा से नहीं, आपके द्वारा भेजे गये नये सर्वेसर्वा के आदेश से भरा जा रहा है।"
भगवान सोचते हैं- "ऐसा तो मैंने कोई आदमी भेजा नहीं। चलो मैं स्वयं देखता हूँ।"
F/g+/t @ Dwarkadhish pandaji
भगवान यमपुरी में आये तो यमराज ने उठकर उनकी स्तुति की। भगवान पूछते हैं- "कहाँ है वह सर्वेसर्वा ?"
यमराजः "वह सामने के सिंहासन पर बैठा है, जिसे आपने ही भेजा है।"
भगवान चौंकते हैं- "मैंने तो नहीं भेजा।"
यमराज ने वह आदेशपत्र दिखाया जिसमें हस्ताक्षर के स्थान में लिखा था 'आदि नारायण भगवान विष्णु।'
पत्र देखकर भगवान सोचते हैं- "नाम तो मेरा ही लिखा है लेकिन पत्र मैंने नहीं लिखा है।
उन्होंने सर्वेसर्वा बन उस मनुष्य को बुलवाया और पूछाः "भाई ! मैंने कब हस्ताक्षर कर तुझे यहाँ भेजा
? तूने मेरे ही नाम के झूठे हस्ताक्षर कर दिये ?"
F/g+/t @ Dwarkadhish pandaji
वह किसान युवक बोला
"भगवान ! ये हाथ-पैर सब आपकी शक्ति से ही चलते हैं। प्राणीमात्र के हृदय में आप ही हैं ऐसा आपका वचन है। अतः जो कुछ मैंने किया है वह आप ही की सत्ता से हुआ है और आपने ही किया। हाथ क्या करे ? मशीन बेचारी क्या करे ? चलाने वाले तो आप ही हैं।
उमा दारूजोषित की नाईं। सब ही नचावत राम गोसांई।।
ऐसा रामायण में आपने ही लिखवाया है प्रभु ! और गीता में भी आपने ही कहा हैःF/g+/t @ Dwarkadhish pandaji
इसके बाद भी अगर आपने हस्ताक्षर नहीं करवाये तो मैं अपनी बात वापस लेता हूँ लेकिन भगवान ! अब ध्यान रखना कि अब रामायण और गीता को कोई भी नहीं मानेगा।
'करन करावनहार स्वामी। सकल घटों के अन्तर्यामी।। ' इस सिख शास्त्र को भी कोई नहीं मानेगा। आप तो कहते हैं 'मैं सबका प्रेरक हूँ' तो मुझे प्रेरणा करने वाले भी तो आप ही हुए इसलिए मैंने आपका नाम लिख दिया।
यदि आप मुझे झूठा साबित करते हैं तो आपके शास्त्र भी झूठे हो जाएँगे, फिर लोगों को भक्ति कैसे मिलेगी ? संसार नरक बन जाएगा।"
F/g+/t @ Dwarkadhish pandaji
भगवान कहते हैं- "बात तो सत्य है रे जिन्दा मनुष्य ! चलो भाई ! ये हस्ताक्षर करने की सत्ता मेरी है इसलिए मेरा नाम लिख दिया लेकिन तूने सारे पापी-अपराधियों को वैकुण्ठ में क्यों भेज दिया ? जिसका जैसा पाप है, वैसी सजा देनी थी ताकि न्याय हो।"
युवकः "भगवान ! मैं सजा देने के लिए नियुक्त नहीं हुआ हूँ। मैं तो अवैधानिक रूप से लाया गया हूँ। मेरी कुर्सी चार दिन की है, पता नहीं कब चली जाए, इसलिए जितने अधिक भलाई के काम हो सके मैंने कर डाले।
मैंने इन सबका बेड़ा पार किया तभी तो आप मेरे पास आ गये। फिर क्यों न मैं ऐसा काम करूँ ? अगर मैं वैकुण्ठ न भेजता तो आप भी नहीं आने वाले थे और आपके दीदार भी नहीं होते। मैंने अपनी भलाई का फल तो पा लिया।"
F/g+/t @ Dwarkadhish pandaji
भगवान स्मित बरसाते हुए बोलेः "अच्छा भाई ! उनको वैकुण्ठ भेज दिया तो कोई बात नहीं। तूने पुण्य भी कमा लिया और मेरे दर्शन भी कर लिए। अब मैं उन्हें वापस नरक भेजता हूँ।"
युवक बोलाः "भगवन् ! आप उन्हें वापस नरक में भेजोगे तो आपके दर्शन का फल क्या ? आपके दर्शन की महिमा कैसे ? क्या आपके वैकुण्ठ में आने के बाद फिर नरक में....?"
भगवानः "ठीक है। मैं उन्हें नरक में नहीं भेजता हूँ लेकिन तू अब चला जा पृथ्वी पर।"
F/g+/t @ Dwarkadhish pandaji
युवकः "हे प्रभु ! मैंने इतने लोगों को तारा और आपके दर्शन करने के बाद भी मुझे संसार की मजदूरी करनी पड़े तो फिर आपके दर्शन एवं सत्कर्म की महिमा पर कलंक लग जाएगा।"
भगवान सोचते हैं- यह तो बड़े वकील का भी बाप है !
उन्होंने युवक से कहाः "अच्छा भाई ! तू पृथ्वी पर जाना नहीं चाहता है तो न सही लेकिन यह पद तो अब छोड़ ! चल मेरे साथ वैकुण्ठ में।"
युवकः "मैं अकेला नहीं आऊँगा। जिस हाथी के निमित्त से मैं आया हूँ, पहले आप उसे वैकुण्ठ आने की आज्ञा प्रदान करें तब ही मैं आपके साथ चलने को तैयार हो सकता हूँ।"
F/g+/t @ Dwarkadhish pandaji
भगवानः "चल भाई हाथी ! तू भी चल।"
हाथी सूँड ऊँची करके यमराज से कहता हैः
"जय रामजी की ! देखा जिन्दे मनुष्य का कमाल !"
मनुष्य में इतनी सारी क्षमताएँ भरी हैं कि वह स्वर्ग जा सकता है, स्वर्ग का राजा बन सकता है, उससे भी आगे ब्रह्मलोक का भी वासी हो सकता है। और तो क्या ? भगवान का माई-बाप भी बन सकता है। उससे भी परे, भगवान जिससे भगवान हैं,
मनुष्य जिससे मनुष्य है उस सच्चिदानंद परमात्मा का साक्षात्कार करके यहीं जीते-जी मुक्त हो सकता है।
इतनी सारी क्षमताएँ मनुष्य में छिपी हुई हैं। अतः अभागे विषयों एवं व्यसनों में अपने को गिरने मत दो। सावधान ! समय और शक्ति का उपयोग करके उन्नत हो जाओ।
F/g+/t @ Dwarkadhish pandaji
Mo:~ 8511028585
हाथी की कमाई, life lesson, elephant story, story or hari,
Jai Dwarikadhish
ReplyDelete