Skip to main content

सात प्रकार के शरीरों की संरचना एवम् विकास human body

सात प्रकार के शरीरों की संरचना एवम् विकास

f/g+/t @ Dwarkadhish pandaji

1. स्थूल शरीर: एक बच्चे के जन्म लेने के बाद 7 वर्षों तक स्थूल शरीर अथवा भौतिक शरीर का निर्माण और विकास होता है। इन साथ वर्षों में भौतिक शरीर का पूर्ण रूप से विकसित होना आवश्यक है। पशुओं के पास सिर्फ भौतिक शरीर ही होता है। इन प्रथम सात वर्षों में मनुष्य और पशुओं में कोई विशेष अंतर नही पायी जाती है। बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जिनका सिर्फ भौतिक शरीर ही निर्मित हो पाता है और आगे के शरीरों का कोई विकास नही हो पाता है। ऐसे लोग पशुवत जीवन ही जीकर मरजाते हैं।भौतिक शरीर में रहने वालों में नकल करने की आदत होती है। उस समय तक बुद्धि का विकास नही हो पाता है। इसलिए पहले सात वर्षों तक बच्चों में अनुकरण अथवा नकल करने की प्रवृत्ति प्रधान रूप से बनी रहती है।f/g+/t @ Dwarkadhish pandaji

2. आकाश शरीर: दूसरे सात वर्षों में आकाश शरीर अथवा भाव शरीर का विकास होने लगता है। व्यक्ति में भावनाओं का जन्म होता है। उसमे प्रेम और आत्मीयता की प्रवृत्ति विकसित हो जाती है। अब व्यक्ति अपने तक सीमित नही रहता है। वह दूसरों से भी अपने संबंधों का ताना बाना बुनने लगता है। विकास का यह चरण व्यक्ति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसीके कारण वह पशुओं से कुछ ऊपर उठ पाता है। उसमे मनुष्य होने की गरिमा आने लगती है। चौदह वर्ष तक पहुँचते पहुँचते सेक्स की भावना भी प्रगाढ़ होने लगती है। बहुत से लोग होते हैं जो चौदह वर्ष के ही होकर रह जाते हैं। उनमे आगे का विकास नही हो पाता है।

3. सूक्ष्म शरीर: तीसरे शरीर में विचार बुद्धि और तर्क की क्षमता विकसित होने लगती है। यह शरीर 14-21 वर्ष तक विकसित होजाता है। इस अवधी में शिक्षा, सभ्यता और संस्कृति विकसित हो जाती है। बौद्धिक चिंतन एवम् विचार इस शरीर के प्रमुख आयाम हैं।f/g+/t @ Dwarkadhish pandaji

4. मनस शरीर: विचार-जगत से भाव-जगत व मनस-जगत अधिक गहरा होता है। मन की प्रधानता के कारण ही व्यक्ति मनुष्य कहलाता है। इस शरीर में चित्रकारिता, काव्य, साहित्य, संगीत आदि कलात्मक भावों की प्रधानता होने लगती है। सम्मोहन, टेलीपैथी, दूरदर्शिता ये सब चौथे शरीर की संभावनाएं हैं। यद्यपि इस शरीर में धोखे और खतरों की संभावना बहुत अधिक होती है, फिर भी इसका पूरी तरह से विकसित होना जरुरी होता है।
कुण्डलिनी जागरण चौथे शरीर की घटना है। इसे हम psychique body भी कह सकते हैं। चौथे शरीर में मनुष्य को कल्पनायें घेरने लगती है, जो उसे एक प्रकार से जानवरों से श्रेष्ठ बना देती है। मनुष्य की तरह जानवर कल्पना करने में असमर्थ होते हैं। कल्पना का मार्ग प्रमाणिक भी हो सकता है और मिथ्या भी हो सकता है। चौथा शरीर 28 वर्ष तक विकसित होता है, लेकिन कम लोग ही इसे विकसित कर पाते हैं।

5. आत्म शरीर: यह शरीर बहुत ही महत्व का होता है। इसे अध्यात्म शरीर, spiritual body भी कहते हैं। अगर जीवन का विकास ठीक ढंग से होता रहे, तो यह 35 वर्ष की उम्र तक विकसित हो जाता है। परंतु यह दूर की बात तो है ही, क्योंकि अधिकांश लोगों में चौथा शरीर ही विकसित नही हो पाता है। चौथे शरीर में कुण्डलिनी शक्ति जगे, तो ही पाँचवे शरीर में प्रवेश हो सकता है अन्यथा नहीं। पांचवे शरीर तक पहुँच जाने वाले लोगो को ही हम सही मायने में आत्मावादि कह सकते हैं। इस शरीर में आकर ही आत्मा हमारे लिए केवल एक शब्द मात्र ही नही वरन् एक अनुभव बनती है। भिन्न भिन्न प्रकार की सिद्धियाँ/ दिव्य शक्तियाँ प्राप्त होती है। यहाँ पर एक खतरा यह भी है की पांचवे शरीर पर पहुँच कर आत्मा के स्तित्व का अनुभव तो होता है परंतु परमात्मा अभी भी प्रतीति से दूर रहता है। सिद्धियाँ प्राप्त होने पर अहंकार होने का खतरा रहता है। ऐसा व्यक्ति आत्मा को ही परम स्थिति मान बैठता है। कई योगी इस चरण में ही योग भ्रस्ट हो जाते है और आगे की साधना नही कर पाते हैं।

f/g+/t @ Dwarkadhish pandaji

6. ब्रह्म शरीर: छठा शरीर ब्रह्म शरीर कहलाता है। इसे cosmic body भी कहते हैं। ऐसा व्यक्ति जो आत्मा को पाँचवे शरीर में उपलब्ध करले तथा उसको पुनः खोने को भी राजी हो, केवल वही छठे शरीर में प्रवेश कर सकता है। वह 42 वर्ष की उम्र तक विकसित हो जाना चाहिए।

7. निर्वाण शरीर: सांतवा शरीर 49 वर्ष तक विकसित हो जाना चाहिए। सातवां शरीर ही निर्वाण शरीर कहलाता है। वास्तव में यह कोई शरीर नही है, बल्कि देह शून्यता (bodylessness) की स्थिति है। वहां पर शरीर जैसी कोई स्थिति नहीं रहती है। शून्य ही शेष बचता है शेष सब समाप्त हो जाता है या अन्य शब्दों में निर्वाण हो जाता है, जैसे दिए का बुझना। यहाँ मैं-तू दोनों नही होते। यहाँ परम शून्य है निर्वाण है।

इस प्रकार उपरोक्त सातों शरीरों की स्थितियां है। दूसरे और तीसरे शरीर पर रुकने वालों के लिए जन्म, मृत्यु और जीवन ही सब कुछ है। चौथे शरीर का अनुभव स्वर्ग-नर्क का है। मोक्ष पांचवे शरीर की अवस्था का अनुभव है। छठे शरीर में पहुंचने पर मोक्ष के भी पार ब्रह्म की सम्भावना है। वहां न कोई मुक्त है और न अमुक्त। 'अहम् ब्रह्मास्मि ' (मैं ही ब्रह्म हूँ) की घोषणा छठे शरीर की सम्भावना है, लेकिन अभी एक कदम और बाकी है और वह है की जहाँ न अहम्, न ब्रह्म। जहाँ मैं-तू दोनों नही, परम शून्य। परम निर्वाण की स्थिति है- यही सातवें शरीर की स्थिति है।
f/g+/t @ Dwarkadhish pandaji

Mo :~ 8511028585

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

Temple Darshan Slok

बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं।  क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है? आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई।  वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए।  यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं। आप इस श्लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं।  यह श्लोक इस प्रकार है –  अनायासेन मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्। देहान्त तव सानिध्यम्,  देहि मे परमेश्वरम्।। इस श्लोक का अर्थ है :  ●अनायासेन मरणम्... अर्थात् बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं। ● बिना देन्येन जीवनम्... अर्थात् परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस...

बहुत सुंदर कथा  हनुमान जी की Hanuman

बहुत सुंदर कथा  हनुमान जी की F/g+/t @ Dwarkadhish pandaji एक साधु महाराज श्री रामायण कथा सुना रहे थे।  लोग आते और आनंद विभोर होकर जाते। साधु महाराज का नियम था रोज कथा शुरू  करने से पहले "आइए हनुमंत ...

पिता का स्वरुप shiv ji

  पिता का स्वरुप  एक बार गणेश जी ने भगवान शिव जी से कहा, पिता जी ! आप यह चिता भस्म लगा कर मुण्डमाला धारण कर अच्छे नहीं लगते, मेरी माता गौरी अपूर्व सुन्दरी औऱ आप उनके साथ इस भयंकर रूप में ! पिता जी ! आप एक बार कृपा कर के अपने सुन्दर रूप में माता के सम्मुख आयें, जिससे हम आपका असली स्वरूप देख सकें ! भगवान शिव जी मुस्कुराये औऱ गणेश की बात मान ली ! कुछ समय बाद जब शिव जी स्नान कर के लौटे तो उनके शरीर पर भस्म नहीं थी … बिखरी जटाएँ सँवरी हुईं मुण्डमाला उतरी हुई थी ! 🚩🙏🏻द्वारकाधीश तीर्थपुरोहित   राजीव भट्ट  8511028585 🙏🏻🚩 https://whatsapp.com/channel/0029Va5Nd51IiRp27Th9V33D 🌹🙏🏻 G/F/in/t @ Dwarkadhish Pandaji Watsapp:~ 8511028585🙏🏻🌹 सभी देवी-देवता, यक्ष, गन्धर्व, शिवगण उन्हें अपलक देखते रह गये, वो ऐसा रूप था कि मोहिनी अवतार रूप भी फीका पड़ जाए ! भगवान शिव ने अपना यह रूप कभी प्रकट नहीं किया था ! शिव जी का ऐसा अतुलनीय रूप कि करोड़ों कामदेव को भी मलिन कर रहा था ! गणेश अपने पिता की इस मनमोहक छवि को देख कर स्तब्ध रह गये मस्तक झुका कर बोले मुझे क्षमा करें पिता जी !...