‼ऋषि अत्री कथा‼
F/g+/t @ dwarkadhish pandaji
मुनि अत्रि ब्रह्मा के मानस पुत्र थे जो ब्रह्मा जी के नेत्रों से उत्पन्न हुए थे. यह सोम के पिता थे जो इनके नेत्र से आविर्भूत हुए. इन्होंने कर्दम की पुत्री अनुसूया से विवाह किया था जो एक महान पतिव्रता के रूप में विख्यात हुईं हैं. पुत्रोत्पत्ति के लिए इन्होंने ऋक्ष पर्वत पर पत्नी अनुसूया के साथ घोर तप किया था जिस कारण इन्हें त्रिमूर्तियों की प्राप्ति हुई जिनसे त्रिदेवों के अशं रूप में दत्त (विष्णु) दुर्वासा (शिव) और सोम (ब्रह्मा) उत्पन्न हुए.
F/g+/t @ dwarkadhish pandaji
इस तथ्य पर एक कथा आधारित है जो इस प्रकार है ऋषि अत्री और माता अनुसूइया अपने दाम्पत्य जीवन को बहुत सहज भाव के साथ व्यतीत कर रहे थे. देवी अनुसूइया जी की पतिव्रतता के आगे सभी के नतमस्तक हुआ करते थे. इनके जीवन को देखकर देवता भी प्रसन्न होते थे जब एक बार देवी लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती को ऋषि अत्रि की पत्नि अनुसूइया के दिव्य पतिव्रत के बारे में ज्ञात होता है तो वह उनकी परीक्षा लेने का विचार करती हैं और तीनों देवियां अपने पतियों भगवान विष्णु, शंकर व ब्रह्मा को अनुसूइया के पतिव्रत की परीक्षा लेने को कहती हैं.
🌸🌸
विवश होकर त्रिदेव अपने रूप बदलकर एक साधू रूप में ऋषि अत्रि के आश्रम जाते हैं और अनुसूइया से भिक्षा की मांग करते हैं. पर वह एक शर्त रखते हैं कि भिक्षा निर्वस्त्र होकर देनी पड़ेगी इस पर देवी अनुसूइया जी धर्मसंकट में फँस जातीं हैं. यदि भिक्षा न दी तो गलत होगा और देती हैं तो पतिव्रत का अपमान होता है अत: वह उनसे कहती हैं की वह उन्हें बालक रूप में ही यह भि़क्षा दे सकती हैं तथा हाथ में जल लेकर संकल्प द्वारा वह तीनों देवों को शिशु रूप में परिवर्तित कर देती हैं और भिक्षा देती हैं.
🌸F/g+/t @ dwarkadhish pandaji
🌸
इस प्रकार तीनों देवता ऋषी अत्रि के आश्रम में बालक रूप में रहने लगते हैं और देवी अनसूइया माता की तरह उनकी देखभाल करती हैं कुछ समय पश्चात जब त्रिदेवियों को इस बात का बोध होता है तो वह अपने पतियों को पुन: प्राप्त करने हेतु ऋषि अत्रि के आश्रम में आतीं हैं और अपनी भूल के लिए क्षमा याचना करती हैं.
🌸🌸
इस तरह से ऋषि अत्री के कहने पर माता अनुसूइया त्रिदेवों को मुक्त करती हैं. अपने स्वरूप में आने पर तीनों देव ऋषि अत्रि व माता अनुसूइया को वरदान देते हैं कि वह कालाम्तर में उनके घर पुत्र रूप में जन्म लेंग और त्रिदेवों के अशं रूप में दत्तात्रेय , दुर्वासा और सोम रुप में उत्पन्न हुए थे.
☀वैदिक मन्त्रद्रष्टा |☀
F/g+/t @ dwarkadhish pandaji
🌸🌸
महर्षि अत्रि वैदिक मन्त्रद्रष्टा ऋषि माने गए हैं अनेक धार्मिक ग्रंथों में इनके आविर्भाव तथा चरित्र का सुन्दर वर्णन किया गया है. महर्षि अत्रि को ज्ञान, तपस्या, सदाचार, भक्ति एवं मन्त्रशक्ति के ज्ञाता रूप में व्यक्त किया जाता है.
🌸🌸
भगवान श्री राम अपने भक्त महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया की भक्ति को सफल करने के लिए स्वयं उनके आश्रम पर पधारते हैं और माता अनुसूइया देवी सीता को पतिव्रत का उपदेश भी देती हैं. उन्हें दिव्य वस्त्र एवं आभूषण प्रदान करती हैं महर्षि अत्रि तीनों गुणों सत्त्व, रजस, तमस गुणों से परे थे वह गुणातीत थे महर्षि अत्रि सदाचार का जीवन व्यतीत करते हुए चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे.
☀ऋषि अत्रि जीवन वृतांत |☀
🌸F/g+/t @ dwarkadhish pandaji
🌸
वेदों में वर्णित है कि ऋषि अत्रि को अश्विनीकुमारों की कृपा प्राप्त थी इस पर एक कथा भी प्राप्त होती है कि एक बार जब महर्षि अत्रि समाधिस्थ थे, तब दैत्यों ने इन्हें उठाकर शतद्वार यन्त्र में डाल देते हैं और जलाने का प्रयत्न करते हैं परंतु समाधी में होने के कारण इन्हें इस बात का ज्ञान नहीं होता तभी उचित समय पर अश्विनीकुमार वहाँ पहुँचकर ऋषि अत्रि को उन दैत्यों के चंगुल से बचाते हैं यही कथा ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में भी बताई गई है. ऋग्वेद के दशम मण्डल में महर्षि अत्रि के तपस्या अनुष्ठान का वर्णन है एवं अश्विनीकुमारों ने इन्हें यौवन प्रदान किया इस तथ्य को व्यक्त किया गया है.
🌸🌸F/g+/t @ dwarkadhish pandaji
ऋग्वेद के पंचम मण्डल में वसूयु, सप्तवध्रि नामक अनेक पुत्रों को ऋषि अत्रि के पुत्र कहा गया है. ऋग्वेद के पंचम ‘आत्रेय मण्डल′, ‘कल्याण सूक्त’ ऋग्वेदीय ‘स्वस्ति-सूक्त’ महर्षि अत्रि द्वारा रचित हैं यह सूक्त मांगलिक कार्यों, शुभ संस्कारों तथा पूजा, अनुष्ठानों में पठित होते हैं इन्होंने अलर्क, प्रह्लाद आदि को शिक्षा भी दी थी. महर्षि अत्रि त्याग, तपस्या और संतोष के गुणों से युक्त एक महान ऋषि हुए.
🌸🌸
मुनि अत्रि ब्रह्मा के मानस पुत्र थे जो ब्रह्मा जी के नेत्रों से उत्पन्न हुए थे. यह सोम के पिता थे जो इनके नेत्र से आविर्भूत हुए. इन्होंने कर्दम की पुत्री अनुसूया से विवाह किया था जो एक महान पतिव्रता के रूप में विख्यात हुईं हैं. पुत्रोत्पत्ति के लिए इन्होंने ऋक्ष पर्वत पर पत्नी अनुसूया के साथ घोर तप किया था जिस कारण इन्हें त्रिमूर्तियों की प्राप्ति हुई जिनसे त्रिदेवों के अशं रूप में दत्त (विष्णु) दुर्वासा (शिव) और सोम (ब्रह्मा) उत्पन्न हुए.
F/g+/t @ dwarkadhish pandaji
Mo:~8511028585
Jai Dwarikadhish I
ReplyDeleteNice looking 👌
ReplyDelete