Skip to main content

गायत्री साधना और ब्राह्मणत्व Brahman Story

गायत्री साधना और ब्राह्मणत्व
F/in/t @ Dwarkadhish Panda ji
Mo:~ 8511028585

एक बार अकबर और बीरबल यमुना नदी के किनारे पर ठंडी हवा का आनंद लेते हुए टहल रहे थे । अचानक अकबर ने एक ब्राह्मण को देखा, बहुत दयनीय हालत में पास से गुजर रहे लोगों से भिक्षा माँग रहा था। 

अकबर ऐसे क्षण का मजाक बनाने का मौका नहीं छोड़ता था।  उसने बीरबल से कहा, "बीरबल ओह, तो यह है आप के ब्राह्मण जिनको "ब्रह्म देवता" के रूप में जाना जाता है जो इस तरह से भीख माँग रहा है।"
F/in/t @ Dwarkadhish Panda ji
Mo:~ 8511028585

बीरबल ने उस समय कुछ भी नहीं कहा लेकिन जब अकबर किले में लौट गया, तब बीरबल वापस उसी जगह पर फिर से आया, जहाँ वो ब्राह्मण भिक्षा मांग रहा था।

बीरबल उससे बात की, उससे पूछा कि वह क्यों भिक्षायापन करता है? 

गरीब ब्राह्मण ने कहा है कि उसके पास जो भी था, वह सब खो दिया है।  कोई धन अथवा आभूषण नहीं है, कोई काम नहीं है, कोई भूमि और कोई भी जीवन यापन के संसाधन नहीं शेष रहे, इसलिए वह अपनी परिस्थितियों के अधीन होकर परिवार के भरण पोषण हेतु  एक भिखारी होने के लिए मजबूर है!

बीरबल ने उस से पूछा कि कितना पैसा वह एक पूरे दिन में कमा लेता हैं । गरीब ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि वह कुछ 6 से 8 "अशर्फियाँ" कमाता है (सोने के सिक्के उस समय अवधि की मुद्रा) एक दिन में. 
F/in/t @ Dwarkadhish Panda ji
Mo:~ 8511028585

बीरबल ने भीख माँगना रोकने के लिए उसके लिए काम देने की पेशकश की और पूछा की अगर आप को मेरे लिए काम करना पड़े तो क्या आप भिक्षायापन छोड़ देंगे??? 

ब्राह्मण ने प्रसन्नता पूर्वक पूछा है कि क्या मेरा काम होगा? मुझे क्या करना है? 

बीरबल ने उस से कहा कि आप को  हर रोज ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर के, स्वच्छ वस्त्र धारण कर के प्रतिदिन इसी स्थान पर सुबह से शाम तक की अवधी में 101 माला गायत्री मंत्र का जाप करना है और हर शाम को आप के इस स्थान को छोड़ने से पहले, आप को 10 अशर्फियाँ पहुंचा दी जायेंगी। बस ये शर्त है कि आप किसी से भिक्षा नहीं मांगेगे।

ब्राह्मण ने सहर्ष इस काम को स्वीकार कर लिया.

अगले दिन से, वह ब्राह्मण एक अलग ही व्यक्ति था, वह उसी जगह पर था, उसी स्थान पर बैठने के लिए, लेकिन किसी से भी भिक्षा याचना नहीं की। वह दिन, किसी भी दिन से अलग था क्योंकि पूरा दिन उस ब्राह्मण ने दिन के अंत तक भिखारी के रूप में कोई अपमान की भावना नहीं झेली और गायत्री जाप के असर से भी उसका मन प्रफुल्लित रहा।
F/in/t @ Dwarkadhish Panda ji
Mo:~ 8511028585

उस शाम को वह प्रसन्नचित्त हो करे 10 अशर्फीयां ले के (जो भिखारी के रूप में अपने दैनिक कमाई की तुलना में अधिक था) अपने परिवार में लौटा।

दिन बीते तो बीरबल ने उस के दैनिक जाप की माला संख्या और अशर्फियों की संख्या - दोनों बढ़ा दीं। 

अब थोड़ा - थोड़ा करके, उसे गायत्री मंत्र के इस जाप में आनंद आना शुरू हो गया  और उसके दिल को गायत्री मंत्र की शक्तियां दीन दुनिया के प्रवाह से दूर ले जा रहीं थीं।

अब वह जल्दी से घर लौटने अथवा अन्य इच्छाओं के लिए चिन्तित नहीं था। भूख प्यास इत्यादि शारीरिक व्याधायें उसे अब पहले की तरह नहीं सताती थीं।

धीरे धीरे गायत्री मंत्र के शक्तिशाली सतत जाप के कारण, उस के चेहरे पे तेज झलकने लगा।
F/in/t @ Dwarkadhish Panda ji
Mo:~ 8511028585

उनका तेज इतना प्रबल हो गया की आने जाने वाले लोगो का ध्यान सहज ही उस ब्राह्मण की ओर आकर्षित होने लगा, वहां अधिक से अधिक लोग उनके दर्शन मात्र की इच्छा से आने लगे और स्वतः ही वहां पर मिठाई, फल, पैसे, कपड़े आदि की भेंट चढाने लगे।

कभी 6 से 8 अशर्फियां कमाने के लिए जो ब्राह्मण सारा दिन अपमानित जीवन जीता था, आज उसे ना तो अपमान झेलने की ज़रुरत हुईं, ना ही बीरबल से प्राप्त होने वाली अशर्फियाँ उसे याद रही, और ना ही श्रद्धापूर्वक चढ़ाई गई वस्तुओं का कोई आकर्षण रहा।

अब वो मन और आत्मा से सारा दिन गायत्री जाप में समाहित हो चुका था। जल्द ही यह खबर कि वहाँ एक महान योगी संत का आगमन हुआ है, सारे शहर में बहुत प्रसिद्ध हो गई, परन्तु उस ब्राह्मण को स्वयं इस प्रसिद्धी का पता नहीं था।

जो लोग वहां दर्शन के लिए आते थे, उन्होंने ही वहां पे उनके स्थान को परवर्तित कर के एक छोटे से मंदिर और आश्रम का स्वरूप दे दिया और दैनिक रूप से वहां पर मंदिर की दिनचर्या की ही तरह पूजा अर्चना भी होने लगीं।
F/in/t @ Dwarkadhish Panda ji
Mo:~ 8511028585

जल्दी ही यह खबर अकबर को भी पहुँची और उनको भी इस "अज्ञात नए संत" के बारे में उत्सुकता और दर्शनाभिलाषा हुई और उन्होंने भी उस *"संत"* की तपोभूमि पर दर्शनार्थ जाने का फैसला किया और वह बहुत से दरबारियों आदि और बेशुमार शाही तोहफे के साथ अच्छी तरह से अपनी राजसी शैली में बीरबल को भी अपने साथ लेकर उस संत से मिलने चल पड़ा।

वहाँ पहुँच कर, सारे शाही भेंटे अर्पण कर के ब्राह्मण के पैर छुए। ऐसे तेजोमय संत के दर्शनों से गद-गद ह्रदय ले के बादशाह अकबर, बीरबल के साथ बाहर आ गया।

अकबर बहुत खुश और आश्चर्यचकित था इस "संत" ब्राह्मण के तेज को देखने से।

जब अकबर-बीरबल ने मंदिर से बाहर कदम रखा, तब अकबर से बीरबल ने पूछा कि आप इस संत को जानतें है?
F/in/t @ Dwarkadhish Panda ji
Mo:~ 8511028585
अकबर ने इनकार कर दिया और फिर बीरबल ने उसे बताया कि वह वो ही भिखारी ब्राह्मण है जिस पर आप कुछ महीने पहले व्यंग कर के कह रहे थे की ये ही "ब्राह्मण देवता" होता है क्या? और आज आप - बादशाह अकबर - इन्हीं के पैरों में शीश नवा कर आयें हैं।

अकबर के आश्चर्य की सीमा नहीं रही और उसी आश्चर्य और असंख्य सवालों में डूबते-उतरते मन को सम्हाल कर बीरबल से पूछा कि यह इतना बड़ा बदलाव कैसे हुआ?

बीरबल ने कहा कि वह अपने मूल रूप में ब्राह्मण है, बस वह परिस्थितिवश अपने धर्म की सच्चाई, शक्तियों और विभिन्न उपायों से दूर था और वह केवल अपने धर्म के असीमित कोष से, केवल मात्र गायत्री मंत्र स्वरूप एक उपाय-रूप सन्मार्ग पुनः अपना लिया और देखें कि क्या इन ब्राह्मण की आज जगह है और कैसे बादशाह ने खुद को पाया इनके तेजोमय स्वरुप के सन्मुख !!!
F/in/t @ Dwarkadhish Panda ji
Mo:~ 8511028585

यही गायत्री का प्रभाव है !!!

यह हम सभी पर भी सामान रूप से अच्छी तरह लागू होता है, जो क्षण जीवन में हम हमारे "उपकरण" से दूर रह कर जी रहे हैं जब तक हम पीड़ित हैं आवश्यकता है की हम भी पुनः अपने धर्म से जुड़ें, अपने संस्कारों को जाने और उनको पूरी तरह माने । मूल ब्रह्म रूप में जो विलीन सो ही ब्राह्मण।

ब्राह्मण को सिर्फ शुद्ध ब्राह्मण होने की ज़रुरत है और फिर उसके कोई रास्ते नहीं रूकते।।
F/in/t @ Dwarkadhish Panda ji
Mo:~ 8511028585

#Brahmanstory #Gaytri #gayatrishakti #gaytriupasna

Comments

  1. II ૐ ભુરભવઃ સ્વઃ તસ્યતવિતુર વરેણ્યમ II ભર્ગો દેવસ્ય ધી મહી ધીયો યોનઃ પ્રચોદયાત II

    ReplyDelete
  2. jay Siua Ram ..Ati sundar Mahraj Sti

    ReplyDelete
  3. Gaytri Mantra ki shakti aparampar hai. Jai Ho.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

Temple Darshan Slok

बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं।  क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है? आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई।  वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए।  यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं। आप इस श्लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं।  यह श्लोक इस प्रकार है –  अनायासेन मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्। देहान्त तव सानिध्यम्,  देहि मे परमेश्वरम्।। इस श्लोक का अर्थ है :  ●अनायासेन मरणम्... अर्थात् बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं। ● बिना देन्येन जीवनम्... अर्थात् परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस...

बहुत सुंदर कथा  हनुमान जी की Hanuman

बहुत सुंदर कथा  हनुमान जी की F/g+/t @ Dwarkadhish pandaji एक साधु महाराज श्री रामायण कथा सुना रहे थे।  लोग आते और आनंद विभोर होकर जाते। साधु महाराज का नियम था रोज कथा शुरू  करने से पहले "आइए हनुमंत ...

पिता का स्वरुप shiv ji

  पिता का स्वरुप  एक बार गणेश जी ने भगवान शिव जी से कहा, पिता जी ! आप यह चिता भस्म लगा कर मुण्डमाला धारण कर अच्छे नहीं लगते, मेरी माता गौरी अपूर्व सुन्दरी औऱ आप उनके साथ इस भयंकर रूप में ! पिता जी ! आप एक बार कृपा कर के अपने सुन्दर रूप में माता के सम्मुख आयें, जिससे हम आपका असली स्वरूप देख सकें ! भगवान शिव जी मुस्कुराये औऱ गणेश की बात मान ली ! कुछ समय बाद जब शिव जी स्नान कर के लौटे तो उनके शरीर पर भस्म नहीं थी … बिखरी जटाएँ सँवरी हुईं मुण्डमाला उतरी हुई थी ! 🚩🙏🏻द्वारकाधीश तीर्थपुरोहित   राजीव भट्ट  8511028585 🙏🏻🚩 https://whatsapp.com/channel/0029Va5Nd51IiRp27Th9V33D 🌹🙏🏻 G/F/in/t @ Dwarkadhish Pandaji Watsapp:~ 8511028585🙏🏻🌹 सभी देवी-देवता, यक्ष, गन्धर्व, शिवगण उन्हें अपलक देखते रह गये, वो ऐसा रूप था कि मोहिनी अवतार रूप भी फीका पड़ जाए ! भगवान शिव ने अपना यह रूप कभी प्रकट नहीं किया था ! शिव जी का ऐसा अतुलनीय रूप कि करोड़ों कामदेव को भी मलिन कर रहा था ! गणेश अपने पिता की इस मनमोहक छवि को देख कर स्तब्ध रह गये मस्तक झुका कर बोले मुझे क्षमा करें पिता जी !...