पापांकुशा एकादशी...
अश्विन शुक्ल एकादशी
महाभारत काल में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को पापांकुशा एकादशी का महत्व बताते हुए कहा था। यह एकादशी पाप का निरोध करती है, यानी कि पाप कर्मों से रक्षा करती है।
पापाकुंशा एकादशी व्रत आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन किया जाता है। पापाकुंशा एकादशी के दिन मनोवांछित फल कि प्राप्ति के लिये श्री विष्णु भगवान कि पूजा की जाती है।
पापाकुंशा एकादशी हजार अश्वमेघ और सौ सूर्ययज्ञ करने के समान फल प्रदान करने वाली होती है। इस एकादशी व्रत के समान अन्य कोई व्रत नहीं है। इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति इस एकादशी की रात्रि में जागरण करता है वह स्वर्ग का भागी बनता है।
इस एकादशी के दिन दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। श्रद्धालु भक्तों के लिए एकादशी के दिन व्रत करना प्रभु भक्ति के मार्ग में प्रगति करने का माध्यम बनता है।
पापांकुशा एकादशी व्रत की कथा अनुसार विन्ध्यपर्वत पर महा क्रुर और अत्यधिक क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था। जीवन के अंतिम समय पर यमराज ने उसे अपने दरबार में लाने की आज्ञा दी। दूतो ने यह बात उसे समय से पूर्व ही बता दी।
मृत्युभय से डरकर वह अंगिरा ऋषि के आश्रम में गया और यमलोक में जाना न पडे इसकी विनती करने लगा। अंगिरा ऋषि ने उसे आश्चिन मास कि शुक्ल पक्ष कि एकादशी के दिन श्री विष्णु जी का पूजन करने की सलाह देते हैं। इस एकादशी का पूजन और व्रत करने से वह अपने सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को गया।
पापांकुशा एकादशी व्रत में यथासंभव दान व दक्षिणा देनी चाहिए। पूर्ण श्रद्धा के साथ यह व्रत करने से समस्त पापों से छुटकारा प्राप्त होता है। शास्त्रों में एकादशी के दिन की महत्ता को पूर्ण रुप से प्रतिपादित किया गया है। इस दिन उपवास रखने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है।
जो लोग पूर्ण रूप से उपवास नहीं कर सकते उनके लिए मध्याह्न या संध्या काल में एक समय भोजन करके एकादशी व्रत करने की बात कही गई है।
द्वारिकाधीश की जय
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