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नारी का आभूषण women' Story

नारी का आभूषण
F/in/t @ Dwarkadhish Pandaji 
Mo:~ 8511028585

मगध की सौंदर्य साम्राज्ञी वासवदत्ता उप वन विहार के लिए निकली उसका साज शृंगार उस राजवधू की तरह था जो पहली बार ससुराल जाती है एका एक दृष्टि उप वन ताल के किनारे स्फटिक शिला पर बैठे तरुण संन्यासी उपगुप्त पर गई चीवरधारी ने बाह्य सौंदर्य को अंतर्निष्ठ कर लिया था और उस आनंद में कुछ ऐसा निमग्न हो गया कि उसे बाह्य जगत की कोई सुध न रहीथी हवा में पायल की स्वर झंकृति और सुगंध की लहरें पैदा करती वासवदत्ता समीप जा खड़ी हुई भिक्षु ने नेत्र खोले वासवदत्ता ने चपल-भाव से पूछा महाम हिम बताएँगे नारी का सर्वश्रेष्ठ आभूषण क्या है जो उसके सौंदर्य को सहज रूप से बढ़ा दे-उत्तर दिया सहज का क्या अर्थ है चंचल नेत्रों को उपगुप्त पर डालती वासव दत्ता ने फिर प्रश्न दोहराया उपगुप्तने सौम्य मुस्कान के साथ कहा-देवि आत्मा जिन गुणों को बिना किसी बाह्य इच्छा आक र्षण भय या छल के अभिव्यक्ति करे उसे ही सहज भाव कहते हैं सौन्दर्य को जो बिना किसी कृत्रिम साधन के बढ़ाता हो, नारी का वह भाव ही सच्चा आभूषण है।        
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किंतु वह भी वासवदत्ता समझ न सकी। उसने कहा मैं स्पष्ट जानना चाहती हूँ यों पहेलियों में आप मुझे न उलझाएँ उपगुप्त अब गंभीर हो गएऔर बोले भद्रे यदि आप और स्पष्ट जाननी चाहती हैं तो इन कृत्रिम सौन्दर्य परिधान और आभूषणों को उतार फेंकिए पैरों की थिरकन के साथ वासव दत्ता ने एक-एक आभूषण उतार दिए। संन्यासी निर्निमेष वह क्रीड़ा देख रहा था, निश्छल मौन विचार-मग्न वासवदत्ता ने अब परिधान उतारने भी प्रारंभ कर दिए। साड़ी,चुनरी लहंगा और कंचुकी सब उतर गए शुभ्र निर्वसन देह के अतिरिक्त शरीर पर कोटपट-परिधान शेष नहीं रहा तपस्वी ने कहा-देवि किंचित् मेरीओर देखिए किंतु इस बार वासवदत्ता लज्जा से आविर्भूत ऊपर को सिर न उठा सकी तपस्वीने कहा देवि यही लज्जा ही नारी का सच्चा आभू षण हैऔर जब तकउसने वस्त्राभूषणपुनः धारण किए उपगुप्त वहाँ से जा चुके थे।
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