शनिदेव-पौराणिक, वैज्ञानिक एवं ज्योतिषीय दृष्टिकोण में (विस्तृत विवरण) ओर शनिदेव शांति उपाय भी दिए गए है
💥 शनिदेव-पौराणिक, वैज्ञानिक एवं ज्योतिषीय दृष्टिकोण में (विस्तृत विवरण) ओर शनिदेव शांति उपाय भी दिए गए है 💥
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नवग्रह में शनि ऐसे ग्रह हैं जिसके प्रभाव से कोई व्यक्ति नहीं बचा है। ऐसा व्यक्ति तलाश करना असम्भव है जो शनि से डरता न हो। कुछ वर्ष पहले तक प्रत्येक व्यक्ति इनका नाम लेने से भी घबराता था परन्तु कुछ समय से इनकी पूजा- अर्चना बहुत ही अच्छे स्तर पर होने लगी है। आज व्यक्ति इनकी महिमा को समझने लगा है। उसके मन से इनका भय समाप्त हो रहा है। किसी को भी शनिदेव से भयभीत होने की आवश्यकता नंहीं है। आप केवल अपने कर्म पर विश्वास रखें, बाकी का सब कुछ शनिदेव पर छोड़ दें। मेरा विश्वास है कि यदि आपके इस जन्म के व पिछले जन्म के कर्म अच्छे हैं तो आपको अवश्य ही शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होगा क्योंकि आपके पिछले जन्म के कर्मों के प्रभाव से आपकी पत्रिका में शनिदेव की स्थिति अनुकूल होगी। इस अनुकूल स्थिति
में आपको अवश्य ही शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होगा पिछला जन्म किसी ने नहीं जाना है, इसलिये यदि आपकी पत्रिका में शनि की स्थिति अनुकूल नहीं है तो फिर आप इस जन्म में अच्छे कर्म करके शनिदेव को अपने अनुकूल कर सकते हैं। अनुभव व ज्योतिषीय ग्रंथों के अनुसार शनिदेव इस संसार के मुख्य न्यायाधीश हैं। भगवान शिव ने उन्हें यह जिम्मेदारी सोंपी है। इनकी अदालत में अपील की सुविधा है अर्थात् यदि आपसे कोई अपराध हुआ है तो आप अपना अपराध स्वीकार कर केवल जुर्माना भरकर अर्थात् पूजा-अर्चना व दान-धर्म करके शनिदेव का अनुग्रह प्राप्त कर सकते हैं। आप अफवाहों एवं अनर्गल बातों पर न जायें क्योंकि कुछ स्वयंभू ज्ञानियों ने जनमानस में शनिदेव का भय बैठा रखा है, जबकि शनिदेव जैसा ग्रह कोई भी नहीं है। यदि आप पाप कर रहे हैं तो शनिदेव आपसे सब कुछ छीनने में पल भर की देरी नहीं करेंगे। यदि आप अच्छे व धार्मिक कर्म में लीन हैं तो फिर वह आपको राजा बनाने में भी विलम्ब नहीं करेंगे। शनिदेव यह नहीं कहते कि आप उनकी बहुत ही पूजा-अर्चना करें तथा अपना कर्म छोड़कर उन्हें पूजें। शनिदेव केवल यह चाहते हैं कि आप केवल उनका स्मरण करे अर्थात् कोई भी कार्य करें तो उनका ध्यान रखें। आप उनका ध्यान रखेंगे तो फिर आपसे कोई भी गलत कार्य हो ही नहीं सकता है।
*ज्योतिष के पितामह महर्षि पाराशर ने अपने ग्रन्थ वृहत्पाराशर होरा शास्त्रम् में शनि के स्वरूप के लिये कहा है-*
कृशदीर्घतनुः सौरिः पिड्गदृष्यानिलात्मकः।
रस्थूलदन्तोऽलसः पंड्गु खररोमकचो द्विजः ।।
अर्थात् शनि का शरीर दुबला-पतला तथा लम्बा कद होता है। इनके मोटे दांत,आलसी स्वभाव के साथ रंग काला होता है। रोम एवं केश तीखे व कठोर तथा सदैव। नीचे दृष्टि किये हुए होते हैं। शनिदेव वायु प्रधान व तामस प्रकृति के साथ क्षुद्रवर्ण के हैं।
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पौराणिक परिचय
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पौराणिक कथा के आधार पर शनिदेव का जन्म सूर्य की पत्नी छाया के गर्भ हुआ है। कहते हैं कि इनके जन्म के समय जब इनकी दृष्टि सूर्य पर पड़ी तो उन्हें कुष्ठ रोग हो गया तथा उनके सारथी अरुण पंगु हो गये थे। शनि के भाई का नाम यम तथा बहिन का नाम यमुना है। शनिदेव बचपन से ही नटखट व शरारती थे। इनकी अपने
भाई-बहिनों में से किसी से नहीं बनती थी सूर्यदेव ने सबके युवा होने पर सभी पुत्रों को राज्य बांट दिये परन्तु शनिदेव अपने पिता के इस कृत्य से खुश नहीं थे। वह सारा राज्य स्वयं अकेले ही चलाना चाहते थे। उन्होंने ब्रह्मा जी का तप आरम्भ कर दिया। जब ब्रह्मा जी शनिदेव की तपस्या से प्रसन्न हो गये तो उन्होंने शनिदेव से वर मांगने को कहा। शनिदेव ने उनसे वर मांगा कि मेरी शुभ दृष्टि जिस पर जाये उसका तो
कल्याण हो तथा जिस पर मेरी क्रूर दृष्टि जाये उसका सर्वनाश हो जाये । ब्रह्मा जी तथास्तु कह कर अन्तर्ध्यान हो गये। इसके पश्चात् शनिदेव ने अपने सभी भाइयों का राज-पाट छीन लिया और अकेले ही राज चलाने लगे। शनिदेव के अन्य भाई उनके इस कृत्य से दुःखी होकर शिवजी के पास गये और सारी बात कहकर हस्तक्षेप का निवेदन किया। इस पर शिवजी ने शनिदेव को बुला कर समझाने का प्रयास किया।
कहा कि तुम्हारे पास तो ब्रह्मा जी से प्राप्त बहुत बड़ी शक्ति है। तुम संसार में सदुपयोग करो। राज-पाट के चक्कर में क्यों समय नष्ट करते हो। शनिदेव बोले कि प्रभु मैं क्या कार्य करूं ? तब शिवजी ने शनिदेव व उनके भाई यमराज के मध्य कार्य सौंपे कि यमराज उन प्राणियों के प्राण हरेंगे जिनकी आयु पूर्ण हो चुकी है तथा शनिदेव संसार में लोगों को उनके कर्मों का फल देंगे। साथ ही शिवजी ने उन्हें और वर दिया कि तुम्हारी कुदृष्टि के प्रभाव से देवता भी नहीं बचेंगे तथा कलियुग में तुम्हारी अधिक महत्ता होगी। तभी से शनिदेव अपने कर्त्तव्य का पालन कर रहे हैं।
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एक कथा के अनुसार गणेश जी का शीश भी शनिदेव की दृष्टि से अलग हुआ था। एक बार जब गणेशजी का जन्मदिन मनाया जा रहा था तब उत्सव में शनि्देव भी सम्मिलित हुए थे परन्तु वह अपनी दृष्टि नीचे की ओर किये थे। माँ पार्वती ने उनसे
कहा कि तुम्हें शायद उत्सव में खुशी नहीं है, इसलिये तुम दृष्टि नीचे किये हो। तब शनिदेव ने कहा कि माँ ऐसी बात नहीं है, मेरी दृष्टि होने पर कोई अनर्थ न हो जाये इसलिये मैंने अपनी दृष्टि नीचे कर रखी है, परन्तु माँ पार्वती नहीं मानी। उन्होंने शनि को दृष्टि ऊपर करने को विवश कर दिया। उनके कहने पर जैसे ही शनिदेव ने अपनी दृष्टि गणेशजी पर डाली, वैसे ही उनका शीश अलग हो गया।
ऐसे ही एक बार शिवजी ने कहा कि शनिदेव मैं तुम्हारी दृष्टि की परीक्षा लेना।चाहता हूँ। इसलिये तुम कल प्रातः आकर मुझ पर दृष्टिपात करना, फिर देखते हैं। इस दृष्टि से तो आप भी नहीं बचेंगे क्योंकि यह आपका ही दिया वर है। यदि आप तुम्हारी दृष्टि का मुझ पर क्या प्रभाव आता है। इस पर शनिदेव कहा कि हे प्रभु, पर मेरी दृष्टि का प्रभाव नहीं आया तो फिर आपके ही वर की बदनामी होगी इस पर शिवजी ने कहा कि देखते हैं, लेकिन अभी जैसा मैंने कहा है, वैसा ही करो। दूसरे दिन शिवजी ने पार्वती से कहा कि ऐसा कौनसा स्थान है जहां शनिदेव मुझे न खोज पायें। इस पर पार्वती ने कहा कि आपको तो वह हर स्थान पर खोज लेंगे, इसलिये
आप किसी जंगल में चले जायें। शिवजी जंगल में जाकर हाथिनी की योनि में विचरने लगे। इधर जब शनिदेव आये और माँ पावती से पूछा कि प्रभु कहां हैं तो उन्होंने अज्ञानता जताई। शनिदेव वापिस चले गये। दूसरे दिन शिवजी ने शनिदेव से कहा कि देखो तुम्हारी दृष्टि का मुझ पर कोई प्रभाव नही आया। शनिदेव ने कहा कि क्षमा करें प्रभु, आप पर तो मेरी दृष्टि का प्रभाव कल ही आ गया था, तभी तो आप मेरी दृष्टि के भय से जंगल में हाथिनी की योनि में विचरते रहे। यह मेरा अपराध है कि बिना किसी कारण के मैंने देवाधिदेव पर दृष्टिपात किया, इसलिये कलियुग में जो भी प्रातः आपके द्वादश ज्योतिर्लिंगं के नाम के उच्चारण के बाद मेरे दस नामों का उच्चारण करेगा, वह सदैव मेरा आशीर्वाद प्राप्त करेगा ।
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मेरे स्वयं के अनुभव में यह आया है कि जो भी व्यक्ति द्वादश ज्योतिर्लिंग के बाद शनिदेव के दस नाम का मानसिक उच्चारण करता है, वह पूर्ण रूप से शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त करता है अर्थात् व्यक्ति पर आने वाले शनिकृत अशुभ फलों में कमी आती है। यहां पर मेरा इस कथा का मुख्य उद्देश्य यही है कि शनिदेव की दृष्टि का यह आशय नहीं है कि जब वह किसी को देखें तभी अशुभ फल आयेगा अपितु पत्रिका में शनि की स्थिति के अनुसार फल प्राप्त होता है।
अब जब कथा चल रही है तो मैं आपको श्री हनुमानजी व शनिदेव की कथा भी बता देता हूँ। जब हनुमानजी ने लंका को जलाया था तब लंका काली नही हुई थी।जब हनुमानजी लंका के कारावास में गये तो शनिदेव वहां उलटे लटके थे। तब हनुमानजी ने उनसे पूछा कि तुम कौन हो तथा लंका जलने के बाद भी काली क्यों नहीं हो रही है? तब शनिदेव ने कहा कि मैं शनि हूँ। रावण ने मुझे योगबल के आधार पर बंद कर रखा है। यही कारण है कि लंका काली नहीं हो रही है क्योंकि में कैद हूँ तथा अग्निकाण्ड का कारक भी मैं ही हूं। इसलिये जब आप मुझे मुक्त करेंगे तो मेरी मात्र दृष्टिपात से ही लंका काली हो जायेगी। हुआ भी यही, जैसे ही हनुमानजी ने शनिदेव को मुक्त किया और शनिदेव ने लंका पर दृष्टिपात किया, वैसे ही लंका काली हो गई। हनुमानजी के द्वारा मुक्त करवाने से ऋणमुक्त होने के लिये शनिदेव ने हनुमानजी से वर मांगने को कहा। हनुमानजी ने यही कहा कि कलियुग में जो भी मेरी सेवा करे, उसे तुम अशुभ फल नहीं दोगे तब शनिदेव ने कहा कि ऐसा ही होगा। तभी से कहा जाता है कि जो व्यक्ति हनुमानजी की सेवा करता है वह शनिकृत कष्मों के मुक्त रहता है। मेरे अनुभव में यह बात किसी हद तक सही है कि हनुमानजी की सेवा से शनिकृत कष्ट पूर्ण समाप्त नहीं होते बल्कि उनमें कमी आती है क्योंकि शनिदेव भी। हनुमानजी के बहुत बड़े भक्त थे शनिदेव अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं और हनुमानजी भी अपने एक भक्त के लिये दूसरे भक्त को निराश नहीं करेंगे। हनुमान जी की सेवा से शनिकृत कष्टों में कमी अवश्य आती है लेकिन शनिदेव के पूर्ण शुभ फल। प्राप्त नहीं होते हैं क्योंकि शनि वचनबद्ध होने से अपने अशुभ फल में तो कमी करेंगे लेकिन शुभ फल भी नहीं देंगे।
शनिदेव को तेल प्रिय होने की यह कथा है कि एक बार शनिदेव ने अपने मद में चूर होकर हनुमानजी को युद्ध के लिये ललकारा। प्रारम्भ में तो प्रभु ने मना किया लेकिन अधिक उकसाने पर उन्होंने शनिदेव को अपनी पूंछ में लपेट कर सारे ब्रह्माण्ड
के तीन चक्कर लगाये। तब शनिदेव का शरीर पहाड़ों से टकरा-टकरा कर छिल गया। उन्होंने प्रभु से क्षमा मांगी। तब प्रभु हनुमानजी ने शनिदेव को मुक्त किया और अपने हाथों से शनिदेव के शरीर पर आये घावों पर पीड़ा से मुक्ति के लिये सरसों का तेल लगाया। तभी से शनिदेव को सरसों का तेल प्रिय है। इस प्रकार अन्य अनेक कथायें
हैं, परन्तु यह हमारा विषय नहीं है। उपरोक्त कथायें शनिदेव को जानने के लिये आवश्यक थीं, इसलिये मैंने आपको बताई।
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शनिदेव वैज्ञानिक परिचय
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सौरमण्डल में शनि का स्थान एक सुन्दर ग्रह के रूप में है इसकी सूर्य से दूरी
लगभग 7800,00,000 मील है। शनि बहुत मन्द गति से भ्रमण करता है। इसी मन्द गति के कारण शनि के अन्य नामों में मन्द व शनि हैं अर्थात् शनै-शनै चलने वाला। यह सौरमण्डल का सबसे कम गति का ग्रह है । यह लगभग 30 वर्षों में सूर्य की परिक्रमा करता है अर्थात् सम्पूर्ण भचक्र (12 राशियों) का भ्रमण करने में 30 वर्ष लगाता है। सूर्य के निकट इसकी गति लगभग 60 मील प्रति घण्टा हो जाती है। शनि का व्यास 85,150 मील मतान्तर से 71,500 मील है । यह अपनी परिधि पर लगभग 6.1 अंश पर झुका हुआ है। इसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी की अपेक्षा 94 गुणा अधिक है। पृथ्वी से शनि की दूरी लगभग 79,10,00,000 मील है। मतान्तर से 89,00,00,000 मील है। अब वास्तव में कुछ भी दूरी हो परन्तु शनि की गति इतनी धीमी है कि हम चाहकर भी इसका वास्तविक दूरी नहीं जान सकते हैं। शनि को सौरमण्डल का सबसे सुन्दर ग्रह माना
जाता है। शनि के चारों ओर नील, वलय व कंकण नाम के तीन वलय हैं जो शनि के
भ्रमण काल में अलग रहते हुए शनि के साथ ही भ्रमण करते हैं जिससे शनि ग्रह की सुन्दरता देखते ही बनती है। वैज्ञानिक आधार पर शनि के अतिरिक्त किसी भी ग्रह के वलय नहीं हैं। शनि के 10 चन्द्र है। अन्य ग्रहों की अपेक्षा शनि सबसे हल्का ग्रह है।
की अपेक्षा अधिक ठण्डा ग्रह है तथा आकार में गुरु की अपेक्षा छोटा है।
शनिदेव सामान्य परिचय
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नवग्रहों में शनि को सेवक का पद प्राप्त है। शनि को कालपुरुष का दुःख कहा जाता है। इस संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो शनि के प्रभाव से अछूता ना हो अथवा भय नहीं खाता हो। जिस प्रकार हम पत्रिका में शुक्र की स्थिति देखकर जीवन में आने व होने वाले सुखों का ज्ञान प्राप्त करते हैं उसी प्रकार हम पत्रिका में शनि की स्थिति से आने वाले दुःखों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक रहते हैं। शनि को पश्चिम दिशा का स्वामित्व प्राप्त है। ज्योतिष में इन्हें नपुंसक लिंग का माना गया है। शनि वायु प्रधान ग्रह है। शनि के बुध, शुक्र मित्र, सूर्य, चन्द्र, मंगल शत्रु तथा गुरु सम ग्रह है। शनि के अन्य नामों में पंगु, असित, अर्किमन्द, रविज, यम, छायासुनु, कृष्णयम, छायात्मज, शनै, सूर्यपुत्र, भास्करि, कपिलाक्ष, अर्कपुत्र, तरणितनय, कोणस्थ, क्रूरलोचन, मन्द व शनैश्चराय हैं।
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शनिदेव के जीवन पर प्रभाव और उपाय
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फलित ज्योतिष में शनि ग्रह सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाला विषय है और ज्यादातर हम लोगों के मन में शनि को लेकर एक डर की स्थिति तो बनी रहती है पर असल में हमारी कुंडली में स्थित शनि ग्रह का हमारे जीवन में कितना विशेष महत्त्व है इस पर हम ध्यान नहीं देते...!
नवग्रह मंडल में सूर्य को राजा की उपाधि प्राप्त है, बुध को मंत्री, मंगल को सेनापति, शनि देव को न्यायाधीश, राहु-केतु प्रशासक, गुरु अच्छे मार्ग का प्रदर्शक, चंद्र माता और मन का प्रदर्शक, शुक्र पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति तथा वीर्य बल। जब समाज में कोई व्यक्ति अपराध करता है तो शनि के आदेश के तहत राहु और केतु उसे दंड देने के लिए सक्रिय हो जाते हैं। शनि की अदालत में दंड पहले दिया जाता है, बाद में मुकदमा इस बात के लिए चलता है कि आगे यदि इस व्यक्ति के चाल-चलन ठीक रहे तो दंड की अवधि बीतने के बाद इसे फिर से खुशहाल कर दिया जाए या नहीं।
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देवता:👉 भैरव जी
गोत्र:👉 कश्यप
जाति:👉 क्षत्रिय
रंग:👉 श्याम, नीला
वाहन:👉 गिद्ध, भैंसा
दिशा:👉 वायव्य
वस्तु:👉 लोहा, फौलाद
पोशाक👉 जुराब, जूता
पशु:👉 भैंस या भैंसा
वृक्ष:👉 कीकर, आक, खजूर का वृक्ष
राशि:👉 मित्र बु.शु.रा.। शत्रु सू, चं.मं.। सम बृह.
भ्रमण:👉 एक राशि पर ढ़ाई वर्ष
शरीर के अंग:👉 दृष्टि, बाल, भवें, कनपटी
पेशा:👉 लुहार, तरखान, मोची
स्वभाव:👉 मुर्ख, अक्खड़, कारिगर
गुण:👉 देखना, भालना, चालाकी, मौत, बीमारी
शक्ति:👉 जादूमंत्र देखने दिखाने की शक्ति, मंगल के साथ हो तो सर्वाधिक बलशाली।
राशि:👉 मकर और कुम्भ का स्वामी। तुला में उच्च का और मेष में नीच का माना गया है। ग्यारहवां भाव पक्का घर।
ज्योतिष में शनि को कर्म, आजीविका, जनता, सेवक, नौकरी, अनुशाशन, दूरदृष्टि, प्राचीन-वस्तु, लोहा, स्टील, कोयला, पेट्रोल, पेट्रोलयम प्रोडक्ट, मशीन, औजार, तकनीक और तकनीकी कार्य, तपश्या और अध्यात्म का कारक माना गया है।
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स्वास्थ की दृष्टि से भी शनि हमारे पाचन-तंत्र, हड्डियों के जोड़, बाल, नाखून, पैरों के पंजे और दांतों को नियंत्रित करता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो ये ही है के हमारी आजीविका या करियर शनि द्वारा ही नियंत्रित होता है, इसलिए अगर कुंडली में शनि अच्छी और मजबूत स्थिति में हो तो ऐसे में व्यक्ति को अपने करियर में अच्छी सफलता मिलती है।
परन्तु यदि कुंडली में शनि कमजोर हो तो ऐसे में करियर में संघर्ष और बार बार उतार चढाव की स्थिति बनती है।
नौकरी करने वाले लोगों के लिए मजबूत शनि उन्हें अच्छी स्तर की नौकरी दिलाता है वहीँ कुंडली में शनि कमजोर होने पर मन मुताबिक नौकरी नहीं मिल पाती और बार बार छूटने की स्थिति भी बनती रहती है तो कुल मिलाकर हमारे करियर की सफलता में शनि की सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
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शनि मशीनों और तकनिकी कार्यों का कारक है इसलिए आज के समय में शनि की महत्ता सबसे ज्यादा है क्योंकि हर काम में तकनीक और मशीनों का उपयोग होता है....
जिन लोगों की कुंडली में शनि अच्छी स्थिति में होता है उन्हें इंजीनियरिंग और तकनीकी कार्यों में अच्छी सफलता मिलती है।.....
कुंडली में शनि मजबूत होने पर व्यक्ति हर बात का गहनता से अध्यनन करने वाला और दूर की सोच रखने वाला होता है।
जिन लोगों की कुंडली में शनि स्व या उच्च राशि (मकर कुम्भ तुला) में होकर केंद्र में होता है, उन्हें अपने करियर में उच्च पदों की प्राप्ति होती है।
राजनीति के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए भी शनि एक बहुत विशेष महत्वपूर्ण ग्रह है क्योंकि अगर कुंडली में शनि मजबूत ना हो तो ऐसे में अच्छा जन समर्थन नहीं मिल पाता इसलिए राजनैतिक सफलता के लिए भी शनि का बहुत अधिक महत्त्व है।
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लोहा स्टील गैस प्लास्टिक कैमिकल प्रोडक्ट्स और कांच ये सभी शनि के अन्तर्गत आते हैं इसलिए इन वस्तुओं से जुड़े व्यापर में सफलता भी व्यक्ति को तभी मिलती है जब कुंडली में शनि मजबूत हो।
जो लोग प्राचीन वस्तुओं या किसी भी प्रचीन विषय को लेकर रिसर्च करते हैं वे भी अच्छे शनि के कारण ही सफल हो पाते हैं।
अध्यात्म मार्ग में भी शनि का बड़ा विशेष महत्त्व है अगर कुंडली के नौवे भाव में शनि स्थित हो या नवे भाव पर शनि का प्रभाव हो तो ऐसे में व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाला होता है।
स्वास्थ की दृष्टि से भी शनि की हमारे जीवन में बहुत अहम भूमिका है अगर कुंडली में शनि कमजोर या पीड़ित हो तो ऐसे में व्यक्ति को पाचन तंत्र और पेट से जुडी समस्याएं हमेशा बनी रहती हैं, शनि कमजोर हो तो व्यक्ति को कम उम्र से ही जॉइंट्स पेन की समस्या शुरू हो जाती है साथ ही दाँतों से जुडी समस्याएं भी उन्ही लोगों को ज्यादा होती हैं जिनकी कुंडली में शनि बहुत पीड़ित या कमजोर हो तो हमारी कुंडली में शनि का अच्छी स्थति में होना स्वास्थ के नजरिये से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
शनि की साढ़ेसाती तो सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाला विषय है पर साढ़ेसाती के दौरान हमारे जीवन में जो संघर्ष आता है उसका गूढ़ कारण ये है के साढ़ेसाती के दौरान शनि हमें संघर्ष की अग्नि में तपाकर हमारे पूर्व अशुभ कर्मो के बोझ को हमारे प्रारब्ध से हटा देते हैं।
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हमारे अहंकार को नष्ट करके हमें एक प्रकार से नया जीवन देते हैं और इसलिए शनि की साढ़ेसाती का भी हमें जीवन में बहुत ही गूढ़ महत्त्व है।
अगर किसी व्यक्ति के ऊपर शनि की कोई भी दशा चल रही है , तो सबसे पहले अपने पैरों को साफ़ रखना शुरू कर दे , यह अति आवश्यक है , उन्हें साबुन से अच्छी तरह धोये , दिन में एक बारी अवश्य ही नहाना चाहिए और गर्मियों में कम से कम दो बारी स्नान ले , दाड़ी और बाल समय से कटवा लेने चाहिए , और हमेशा साफ़ सुथरे रहने का प्रयास करे , शनि की किसी भी दशा में चन्दन का इत्र लगाकर रखे , और अपने आस पास भी चन्दन की खुशबू प्रयोग में लाना शुरू कर दे। अगर आप मोज़े / जुराबे पहनते हो तो हमेशा रोज़ बदले । शनि की दशा में आपको गन्दा रहने , न नहाने , आलस्य के कारण बढे हुए बाल रखने की आदत पड़ जाती है , तो शनि के कारण होने वाले बुरे प्रभावों से बचने के लिए नीचे दिए सब उपाय करे और हमेशा साफ सुथरे रहे।
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शनि को यह पसंद नहीं 👉 शनि को पसंद नहीं है जुआ-सट्टा खेलना, शराब पीना, ब्याजखोरी करना, परस्त्री गमन करना, अप्राकृतिक रूप से संभोग करना, झूठी गवाही देना, निर्दोष लोगों को सताना, किसी के पीठ पीछे उसके खिलाफ कोई कार्य करना, चाचा-चाची, माता-पिता, सेवकों और गुरु का अपमान करना, ईश्वर के खिलाफ होना, दांतों को गंदा रखना, तहखाने की कैद हवा को मुक्त करना, भैंस या भैसों को मारना, सांप, कुत्ते और कौवों को सताना। शनि के मूल मंदिर जाने से पूर्व उक्त बातों पर प्रतिबंध लगाएं।
शुभ शनि की निशानी👉 शनि की स्थिति यदि शुभ है तो व्यक्ति हर क्षेत्र में प्रगति करता है। उसके जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता। बाल और नाखून मजबूत होते हैं। ऐसा व्यक्ति न्यायप्रिय होता है और समाज में मान-सम्मान खूब रहता हैं।
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अशुभ शनि की निशानी👉 शनि के अशुभ प्रभाव के कारण मकान या मकान का हिस्सा गिर जाता है या क्षति ग्रस्त हो जाता है, नहीं तो कर्ज या लड़ाई-झगड़े के कारण मकान बिक जाता है। अंगों के बाल तेजी से झड़ जाते हैं। अचानक आग लग सकती है। धन, संपत्ति का किसी भी तरह नाश होता है। समय पूर्व दांत और आंख की कमजोरी।
सावधानी👉 कुंडली के प्रथम भाव यानी लग्न में हो तो भिखारी को तांबा या तांबे का सिक्का कभी दान न करें अन्यथा पुत्र को कष्ट होगा। यदि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला का निर्माण न कराएं। अष्टम भाव में हो तो मकान न बनाएं, न खरीदें।
जिनकी जन्मकुण्डली में शनि पहले, चौथे, सातवें अथवा दसवें घर में अपनी राशि मकर या कुंभ में विराजमान होता है। उनकी कुण्डली में पंच महापुरूष योग में शामिल एक शुभ योग बनता है। इस योग को शश योग के नाम से जाना जाता है। यह एक प्रकार का राजयोग है। शनि अगर तुला राशि में भी बैठा हो तब भी यह शुभ योग अपना फल देता है। इसका कारण यह है कि शनि इस राशि में उच्च का होता है।
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माना जाता है कि जिनकी कुण्डली में यह योग मौजूद होता है वह व्यक्ति गरीब परिवार में भी जन्म लेकर भी एक दिन धनवान बन जाता है। मेष, वृष, कर्क, सिंह, तुला वृश्चिक, मकर एवं कुंभ लग्न में जिनका जन्म होता है उनकी कुण्डली में इस योग के बनने की संभावना रहती है।
अगर आपकी कुण्डली में शनि का यह योग नहीं बन रहा है तो कोई बात नहीं। आपका जन्म तुला या वृश्चिक लग्न में हुआ है और शनि कुण्डली में मजबूत स्थिति में है तब आप भूमि से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। गुरू की राशि धनु अथवा मीन में शनि पहले घर में बैठे हों तो व्यक्ति धनवान होता है।
उपाय : सर्वप्रथम भगवान भैरव की उपासना करें (ॐ भैरवाय नम:)। शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं। तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ, और जूता दान देना चाहिए। कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलाएं। छायादान करें- अर्थात कटोरी में थोड़ा-सा सरसों का तेल लेकर अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापो की क्षमा मांगते हुए रख आएं। दांत साफ रखें। अंधे-अपंगों, सेवकों और सफाईकर्मियों से अच्छा व्यवहार रखें।
अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि कमजोर हो या शनि की दशा या साढ़ेसाती के दौरान जीवन में बहुत ज्यादा बाधाएं आ रही हों तो ये कुछ सरल उपाय आपके लिए बहुत लाभकारी होंगे।
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शनि की अशुभ दशा अन्तर्दशा अरिष्ट शांति के कुछ आसान उपाय
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👉 किसी की भी आलोचना से बचे अपने ऑफिस या कार्यालय में दोस्तों से सम्बन्ध अच्छे रखें।
👉 सप्ताह में एक बार शनि या भेरो मंदिर में दर्शन करें !
👉 हनुमान चालीसा का नियम से पाठ करें
मन में आत्मविश्वास बनाये रखें अपने पर विश्वास रखें !
👉 मजबूरी में भी किसी को धोखा ना दें।
👉 ज़रूरी बातों में घर के और बाहर के बुजुर्ग लोगों से समय समय पर सलाह मशवरा लेते रहे उन्हे क्रोध और अपमानित करने से बचे देखिएगा , शनि के बुरे प्रभाव अपने आप कम हो जायेंगे !!
👉 नीले रंग के कपड़ों का अधिक प्रयोग करें।
👉 शनिवार के दिन अपंग, नेत्रहीन, कोढ़ी, अत्यंत वृद्ध या गली के कुत्ते को खाने की सामग्री दें।
👉 पीपल या शम्मी पेड़ के नीचे शनिवार संध्या काल में तिल का दीपक जलाएं।
👉 समर्थ हैं तो काली भैंस, जूता, काला वस्त्र, तिल, उड़द का दान सफाई करने वालों को दें।
👉 सरसों तेल की मालिश करें व आंखों में सुरमा लगाएं।
👉 पानी में सौंफ, खिल्ला या लोबान मिलाकर स्नान करें।
👉 लोहे का छल्ला मध्यम अंगुली में शनिवार से धारण करें।
👉 लोहे की कटोरी में सरसों तेल में अपना चेहरा देखकर दान करें।
👉 शम्मी की जड़ काले कपड़े में बांह में बांधें।
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शनि देव का वैदिक मंत्र-👇
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्रवन्तु नः॥
पौराणिक मंत्र-👇
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामी शनैश्चरम्॥
बीज मंत्र-
👇
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
सामान्य मंत्र-👇
ॐ शं शनैश्चराय नमः।
जप संख्या 23000 जप समय संध्या काल
निम्न मंत्रो का संभव हो तो शनि मंदिर अथवा घर मे संध्या का समय शुद्ध तन एवं मन से जाप करने से शनि जानित अरिष्ट में शांति आती है
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भगवान शनिदेव को प्रसन्न करेंगे ये 10 तरीके, हर तरह की शत्रु बाधा होगी दूर
शनिदेव को प्रसन्न करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
शनि देव की पूजा करने से जीवन में पॉजिटिव एनर्जी बनी रहती है।
शनिवार के दिन व्रत और दान करने से शनि को प्रसन्न करने में अधिक सहायता मिलती है।
भगवान शनिदेव को प्रसन्न करेंगे ये तरीके, हर तरह की शत्रु बाधा होगी दूर
हिंदू धर्म के हिसाब से शनि का प्रभाव जीवन में कई तरह के बदलाव पैदा करता है। अगर शनि का प्रभाव शुभ है तो जीवन में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहेगी और अगर शनि का प्रभाव अशुभ है तो आपको परेशानियां और मुसीबतें झेलनी पड़ेंगी। कुंडली में शनि ग्रह अगर अशांत हो जाए तो व्यक्ति के जीवन में कष्ट और समस्याओं बढ़ जाती हैं ऐसे में ज़रुरी है कि आप प्रत्येक शनिवार को कुछ सरल उपाय करके शनि की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
👉.शनि के दोषों से छुटकारा पाने के लिए शनिवार को व्रत करना अत्यंत लाभकारी रहता है इस दिन व्रत और पूजन से न्याय के देवता शनि प्रसन्न होते हैं।
👉.शनिवार को सरसों के तेल का पूजा में इस्तेमाल करने का खास महत्व है। शनि प्रतिमा पर सरसों का तेल चढ़ाने से सरसों का दीपक जलाने से फायदा मिलता है।
👉.शनि को काले तिल अर्पण करने चाहिए इसके प्रभाव से व्यक्ति का जीवन दोष मुक्त बनता है और साथ ही जीवन में सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
पूजा के दौरान शनि चालिसा, शनि आरती और शनि देव के नामों का उच्चारण करना भी लाभकारी माना जाता है इससे भी शनि प्रसन्न होते हैं।
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👉 पीपल के पेड़ की पूजा भी शनि को प्रसन्न करने में महत्वपूर्ण मानी जाती है इसलिए प्रत्येक शनिवार को पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाना चाहिए।
👉शनिवार को शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाने से फायदा मिलता है। इससे आर्थिक समस्याओं से दूर होती हैं।
👉 इस दिन काली गाय और काले कुत्ते को रोटी खिलाने से विशेष लाभ मिलता है। इन्हे रोटी खिलाने से शनि की शुभ दृष्टि प्राप्त होती है।
👉पूजा करते समय काले रंग के वस्त्र पहनना अच्छा रहता है इससे पूजा का अधिक लाभ मिलता है और पीड़ा से जल्दी मुक्ति मिलती है।
👉सरसों के तेल और काले तिल का दान इस दिन सबसे उत्तम माना जाता है। इन चीज़ों का दान करने से कुंडली को दोष मुक्त बनाने में सहायता मिलती है।
👉संभव हो तो शनिवार के दिन किसी कन्या को सामर्थ्य के हिसाब से धन का दान करके भी शनि कृपा प्राप्त की जा सकती है।
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Jai shree sanidev maharaj ji ki
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